Wednesday, February 20, 2013


सेक्स संबंधी विकार को दूर करने का संपूर्ण ज्ञान 'कामसूत्र' में!




वात्स्यायन द्वारा लिखित कामसूत्र एक ऐसा ग्रंथ है जो सेक्स संबंधी विकार को दूर करने में सहायता करता है। वात्स्यायन ने ब्रह्मचर्य और परम समाधि का सहारा लेकर कामसूत्र ग्रंथ को लिखा। उनका उद्देश्य किसी भी रूप में वासना को उत्तेजित करना नहीं था, ऐसा उनके बाद के कई टिप्पणीकारों का मानना है। कामसूत्र को न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी काफी प्रसिद्धि प्राप्त है। भारतीय चिंतन परंपरा में 'काम' (सेक्स) को गलत या बूरा न मानते हुए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। 'काम' के बिना जीवन को अपूर्ण माना गया है, क्योंकि इसके बिना मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता जो ध्येय है।

वात्स्यायन उस दौर में पैदा हुए थे जिसे भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल माना गया है। दर्शन, कला, साहित्य, शिल्प, विज्ञान, सौंदर्य शास्त्र आदि क्षेत्रों में उस जमाने में श्रेष्ठ कृतियां सामने आईं। वात्स्यायन के पूर्व कामशास्त्र पर कई विद्वानों ने ग्रंथों की रचना की। इनमें बाभ्रव, नंदी, औद्दालिक श्वेत केतु, गोणिकापुत्र एवं कुचुमार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वात्स्यायन ने इन सभी विद्वानों का उल्लेख किया है और यह स्वीकार किया है कि उन्होंने बाभ्रवीय सिद्धांतों के अनुसार कामसूत्र ग्रंथ का प्रणयन किया।

कामशास्त्र पर संस्कृत में कई ग्रंथ हैं अनंगरंग, कंदर्प चूड़ामणि, कुट्टिनीमत, नागर सर्वस्व, पंचसायक, रतिकेलि कुतूहल, रति मंजरी, रति रहस्य, रतिरत्न प्रदीपिका, स्मरदीपिका, श्रृंगारमंजरी आदि। वात्स्यायन का कामसूत्र सर्वाधिक लोकप्रिय माना जाता है। कामसूत्र में वात्स्यायन ने यौन जीवन से जुड़े हर पहलुओं पर गहरी जानकारी दी गई है। इस ग्रंथ का अधिकांश भाग मनोविज्ञान से संबंधित है। आज से दो हजार वर्ष से भी पहले विचारकों को स्त्री और पुरुषों के मनोविज्ञान का इतना सूक्ष्म ज्ञान था। कामसूत्र में 36 अध्याय, 64 विषय और सात भाग हैं। श्लोकों की संख्या एक हज़ार दो सौ पचास है।

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