Monday, February 4, 2013

दुनिया भर के मसालों में यह सबसे महंगा है और एक से डेढ़ लाख रूपए किलो बिकता है। विश्व में मुख्य रूप से कश्मीर घाटी और ईरान में इसकी खेती होती है। इसके अलावा स्पेन में भी इसे उगाया जाता है। मगर गुणवत्ता में अव्वल नंबर पर हिन्दुस्तानी ज़ाफ़रान ही माना जाता है।
- असली केसर पानी में पूरी तरह घुल जाती है।केसर को पानी में भिगोकर कपडे पर रगडने से पीला केसरिया रंग निकले तो ये असली है।यदि पहले लाल रंग फिर बाद में पीला रंग निकले तो ये नकली है।
- यह उष्णवीर्य, उत्तेजक, पाचक, वात-कफ नाशक मानी गयी है।
- यह उत्तेजक, वाजीकारक, यौनशक्ति वर्धक, त्रिदोष नाशक, वातशूल शमन करने वाली है।
- यह मासिक धर्म ठीक करने वाली, त्वचा को निखारने वाली, रक्तशोधक, प्रदर और निम्न रक्तचाप को ठीक करने वाली भी है। कफ का नाश करने, मन को प्रसन्न रखने, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी भी है।
- इसका उपयोग यूनानी नुस्खों में भी किया जाता है।
- केसर बुखार की शुरुवाती अवस्था में बुखार बाहर निकालता है ; पर तेज़ बुखार में , पित्त की अधिकता में इसका उपयोग सावधानी से करना चाहिए।
- गुलाब जल में केसर घिस कर आँखों में डालने से आँखों की रौशनी बढती है।
- महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द को दूर करने के लिए 2-2 रत्ती केसर दूध में घोलकर दिन में तीन बार देना फायदेमंद होता है।
- केसर और अकरकरा की गोलियाँ बनाकर सेवन करने से मासिक धर्म नियमित होता है।
- बच्चों को सर्दी, जुकाम, बुखार होने पर केसर की एक पंखुड़ी पानी में घोंटकर इसका लेप छाती, पीठ और गले पर लगाने से आराम होता है।
- चंदन को केसर के साथ घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से सिर, आंख और मस्तिष्क को शीतलता, शांति और ऊर्जा मिलती है। इससे नाक से रक्त का गिरना बंद हो जाता है और सिर दर्द जल्द दूर होता है।
- बच्चे को सर्दी हो तो केसर की 1-2 पंखुड़ी 2-4 बूंद दूध के साथ अच्छी तरह घोंटें ताकि केसर दूध में घुल जाए। इसे एक चम्मच दूध में मिलाकर बच्चे को सुबह-शाम पिलाएं। इससे उसे काफी लाभ होगा। – माथे, नाक, छाती व पीठ पर लगाने के लिए केसर, जायफल व लौंग का लेप पानी में बनाएं और रात को सोते समय इसका लेप करें।
- केसर दूध पौरुष व कांतिवर्धक होता है।
- यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत (लीवर), मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों में भी लाभकारी होती है। प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है।
- जाड़े में गर्म व गर्मी में ठंडे दूध के साथ केसर के उपयोग की सलाह दी जाती है।
- चोट लगने पर या त्वचा के झुलस जाने पर केसर का लेप लगाने से आराम मिलता है।
- पेट से जुड़ी अनेक परेशानियां, जैसे अपच, दर्द, वायु विकार आदि में केसर काफी उपयोगी साबित होती है।
- दूध में डालकर पिने से पेट के कीड़े समाप्त होते है।
- केसर को घी के साथ खाने से पुरानी कब्ज दूर होती है।
- 120 मिलीग्राम केसर को 50 मिली पानी में मिटटी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखे। सुबह 20-25 किशमिश खाकर इस पानी को पिए।15 दिनों तक सेवन करने से ह्रदय की कमजोरी दूर होती है।
- केसर ठंड में उपयोग की जाने वाली एक बेहतरीन दवा है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार ठंड में रोजाना थोड़ी मात्रा में केसर लेने से शरीर में कई प्रकार के रोग नहीं होते हैं।इसका स्वभाव गर्म होता है। इसलिए औषधि के रूप में 250 मिलिग्राम व खाद्य के रूप में 100 मिलिग्राम से अधिक मात्रा में इसके सेवन की सलाह नहीं दी जाती।
- कई अध्ययनों से पता चला है कि गर्भवती महिला को प्रतिदिन दूध में केसर घोलकर पिलाने से जन्म लेने वाले शिशु का रंग गोरा होता है। इतना ही नहीं, यदि मां गर्भावस्था के दौरान केसर का सेवन करती है तो इससे उसका होने वाला बच्चा तंदुरुस्त होता है और कई तरह की बीमारियों से बचा रहता है। कई बार नवजात शिशु को सर्दी जकड़ लेती है। इससे कभी-कभी उसकी नाक भी बंद हो जाती है जिससे बच्चा मुंह से सांस लेने लगता है और हकलाने लगता है। ऐसी स्थिति में मां के दूध में केसर मिलाकर बच्चे के सिर और नाक पर मलें। इससे बच्चे को काफी आराम मिलता है और उसकी बेचैनी कम हो जाती है।
- अनेक लोग को शीत काल में कोल्ड-एलर्जी हो जाती है। अधिकतर सर्दी की शुरुआत व अंत के समय या तेज शीत लहर चलने पर नाक से पानी टपकना “नजला जुखाम” से पीड़ित हो जाते है| सर्दी के शुरू होने से पहले यानी दिवाली के बाद एक ग्राम केसर लाकर उसे खरल में बारीक पीस ले, फिर उस पीसी हुई केशर और २००-२५० ग्राम गुलाब जल को काँच की शीशी में डालकर रख दे। रोजाना सोते समय तीन वर्ष से अधिक के बच्चो को आधी चम्मच गिलास दुग्ध में; दस वर्ष से अधिक आयु वाले एक चम्मच गिलास दुग्ध में ;वृद्धो को दो चम्मच गिलास दुग्ध में प्रति रात्रि सोने से पहले गुनगुने दुग्ध में मिलाकर पीये। केसर मिश्रित गुलाब जल को चम्मच में लेने से पहले शीशी को थोड़ा हिला ले।कोल्ड एलर्जी से होने वाली खांसी-जुकाम-नजला-नाक टपकना पुरी सर्दी के लिए ख़त्म….. (नोट:-तीन वर्ष से कम आयु के बच्चो के लिए यह नुस्खा वर्जित है)


Friday, October 12, 2012

सही दवाओं का चयन कैसे करें?
क्या चिकित्सक द्वारा निर्धारित दवा शत प्रतिशत सही ही होती हैं? 
प्रायः हम अनुभव करते हैं कि सभी व्यक्तियों को सभी वस्तु अनुकूल नहीं होती। किसी को किसी वस्तु से एलर्जी होती है, जबकि उसी पदार्थ से अन्य व्यक्ति को ल
ाभ होता है। किसी को दूध लाभप्रद होता है, जबकि किसी अन्य को दूध का पाचन भी कठिन होता है। ऐसा क्यों? प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में उपलब्ध अवयवों की मात्रा का अनुपात एवं आवश्यकताएँ अलग-अलग क्यों होती है? कोई भी डाक्टर कितना भी अधिक अनुभवी क्यों न हों, प्रत्येक रोगी के लिए सही दवा एवं उसकी सही मात्रा का निर्धारण नहीं कर सकता। कुछ दवाइयाँ उपयोगी हो सकती हैं तो कुछ अनुपयोगी एवं अनावश्यक भी। इसी कारण दवाओं के दुष्प्रभाव पड़ते हैं।
कौन-सी दवा किसके लिये कितनी लाभप्रद अथवा हानिकारक होती है, यदि इस बात का पता चल जाये तो अनुपयोगी दवाओं के सेवन से सहज ही बचा जा सकता है जो शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिये परम आवश्यक है।
तरंगें से शरीर का आभा मंडल प्रभावित होता है-
जो व्यापारी अपने व्यवसाय में हेराफेरी करते हैं, यदि उनके दुकान के बाहर कोई इन्कमटैक्स अथवा सेल्स टैक्स ऑफिसर की गाड़ी ठहरती है तो उन्हें तनाव क्यों हो जाता है? पुलिस को देखते ही अपराधी क्यों घबराने लगता है? जितना प्रेम माता को अपने बच्चे से होता है, भले ही उसका रूप कैसा ही क्यों न हो, उतना प्रेम अन्य बच्चों से क्यों नहीं होता? हमारे शरीर के चारों तरफ आभा मंडल अथवा चुम्बकीय क्षेत्र होता है। जिस पदार्थ की तरंगें उस आभा मंडल को शुद्ध बनाती है, उसे शक्तिशाली बनाती है, वे वस्तु और प्रव्रवृत्तियाँ मानव के लिए हितकारी होती है। परन्तु जिन तरंगों से आभा मंडल विकृत और कमजोर बनता है, वे पदार्थ और क्रियाएँ हमारे लिए अनुपुपयोगेगी और अकरणीय होती हैं।
सही दवा चयन की विधि - एक वजन करने वाली मशीन लें। फिर अपनी बायीं हथेली को हृदय की धड़कन वाले स्थान से स्पर्श कर, दूसरी हथेली से वजन करने वाली मशीन पर जितना ज्यादा से ज्यादा दबाव दे सकते हैं दें और अपनी ताकत को मशीन से माप लें। अब जो वस्तु अथवा दवा जिसका परीक्षण करना है उसकी पर्याप्त मात्रा को बायीं हथेली अथवा कागज में लेकर पुनः धड़कन वाले स्थान पर हलका सा स्पर्श करें। तरल पदार्थ का परीक्षण करना हो तो कांच के बर्तन में लेकर धड़कन वाले स्थान पर स्पर्श करें तथा दाहिनी हथेली को पहले की भांति वजन तोलने वाली मशीन पर अधिकतम दबाव देकर पुनः अपनी ताकत का माप करें। अगर आपकी ताकत में वृद्धि होती है तो जिस वस्तु का आप बायें हाथ में परीक्षण कर रहे हैं, वह वस्तु आपके लिये स्वास्थ्यवर्धक होती है। परन्तु इसके विपरीत यदि आपकी शक्ति पहले से कम होती है तो वह खाद्य वस्तु अथवा दवा का सेवन हानिकारक होता है। हमारा हृदय शरीर में सबसे संवदेनशील अंग होता है तथा उसकी धड़क़न बायीं हथेली में जो पदार्थ है, उनसे निकलने वाली तरंगं को मस्तिष्क में भेजने के लिए एण्टिना का कार्य करती है। मस्तिष्क तरंगों के गुणों के अनुसार प्रतिक्रिया करता है जो
पदार्थ की तरंगें पेट में जाने से पहले ही व्यक्ति की ताकत घटा दें, उन खाद्य पदार्थ और दवाइयों का सेवन निश्चित रूप से हानिकारक होता है। यह प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि परीक्षण करते समय दोनों स्थितियों में मशीन पर एक जैसा अधिकतम दबाव डालना चाहिए तथा शरीर की स्थिति एक जैसी ही होनी चाहिए। । अलग-अलग दबाव डाला गया अथवा शरीर की स्थिति ;च्वेजनतमद्ध को बदला गया तो इस प्रयोग के परिणाम प्रामाणिक नहीं होंगे।
दवा के सही मात्रा के चयन करने की विधि - कोई भी दवा अथवा पदार्थ कितना भी लाभप्रद क्यों न हो, उपयोगी क्यों न हों, उसका सीमित प्रयोग ही उपयोगी होता है। जैसे प्यास लगने पर पानी अच्छा लगता है। परन्तु वहीं पानी प्यास समाप्त हो जाने के बाद भी पीया जायें तो शरीर उसे स्वीकार नहीं करता है। भूखे को भोजन अच्छा लगता है, परन्तु भूख मिट जाने के पश्चात भोजन करना हानिकारक होता है। अतः यह जानना आवश्यक है कि किसी दवा अथवा खाद्य पदार्थ का कितना उपयोग किया जाये?
प्रथम बार परीक्षण करने के पश्चात जो पदार्थ अथवा दवा उपयोगी है उसकी डाक्टर द्वारा निर्धारित मात्रा का सेवन करने के आधा घंटे पश्चात पूरे प्रयोग को पुनः दोहरायें। जब तक परीक्षण में ताकत बढ़ती है, तब तक उस दवा की मात्रा को थोड़ा-थोड़ा बढ़ाकर अथवा कम कर सेवन करें तथा आधा घंटे पश्चात पुनः पुनः इस प्रयोग को दोहराते रहें जब तक दवा सेवन करने के पश्चात धड़कन के पास दवा के स्पर्श से शक्ति न घटे, न बढ़े।


पूरा पोस्ट नही पढ सकते तो नीचे दिए गए लिंक पर जा कर विडियो देखे :

http://www.youtube.com/watch?v=D7yQgO2eZvo

चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर देते है ।
जैसे किसी को पीलिया हो जाये माने जॉन्डिस उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना ; गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है । और ये ही चूना नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है - अगर किसी के शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे; और जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अच्छी दवा है ये चूना । बिद्यार्थीओ के लिए चूना बहुत अच्छा है जो लम्बाई बढाता है - गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला के खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिला के खाओ, दाल नही है तो पानी में मिला के पियो - इससे लम्बाई बढने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है । जिन बच्चों की बुद्धि कम काम करती है मतिमंद बच्चे उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे ।
बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दवा है चूना । और हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना; गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना ।

जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा केल्शियम की जरुरत होती है और चूना केल्शियम का सबसे बड़ा भंडार है । गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे - पहला फायदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगा, दूसरा बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त होगा , तीसरा फ़ायदा वो बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया , और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।

चूना घुटने का दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है, एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है । कई बार हमारे रीढ़की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बढ़ जाती है Gap आ जाता है - ये चूना ही ठीक करता है उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चूने से ठीक होता है । अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है । चूना खाइए सुबह को खाली पेट ।

अगर मुंह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है , मुंह में अगर छाले हो गए है तो चूने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है । शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए , एनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना , चूना पीते रहो गन्ने के रस में , या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में - अनार के रस में चूना पिए खून बहुत बढता है , बहुत जल्दी खून बनता है - एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट ।

भारत के जो लोग चूने से पान खाते है, बहुत होशियार लोग है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चूना अमृत है .. तो चूना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चूने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था केन्सर करता है, पान में सुपारी मत डालिए सोंट डालिए उसमे , इलाइची डालिए , लौंग डालिए. केशर डालिए ; ये सब डालिए पान में चूना लगा के पर तम्बाकू नही , सुपारी नही और कत्था नही ।
अगर आपके घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये और हरसिंगार के पत्ते का काढ़ा खाइए घुटने बहुत अच्छे काम करेंगे । राजीव भाई कहते है चूना खाइए पर चूना लगाइए मत किसको भी ..ये चूना लगाने के लिए नही है खाने के लिए है ; आजकल हमारे देश में चूना लगाने वाले बहुत है पर ये भगवान ने खाने के लिए दिया है ।
 — 
~ गाय बची तो ही देश बचेगा, सभ्यता बचेगी ~ 
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भारत की संस्कृति, समृद्वि और सभ्यता का आधार गंगा, गौ, गायत्री, गीता और गुरु ही रही है। 

भारत की संस्कृति प्रकृति मूलक संस्कृति है।
 दुनिया के

प्राचीनतम ग्रन्थ वेदो में कण-कण के प्रति अहोभाव की अभिव्यक्ति है। हमने सूर्य-चन्द्र, ग्रह नक्षत्र, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों को पूज्य माना है। प्रकृति का कण-कण हमें देता है। इसीलिए कण-कण में देवाताओं का निवास माना है।

इस प्राकृतिक संरचना में गाय को हमने विशेष दर्जा दिया है।

उसे कामधेनु तथा सर्व देव मयी गौ माता माना है। वह हमें दूध, दही, घी, गोबर-गोमूत्र के रूप में पंचगव्य प्रदान करती है। सृष्टि की संरचना पंचभूत से हुई है। यह पिंड, यह ब्रहमाण्ड,पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश रूप पंचभूतों के पांच तत्वो से बना है। इन पंचतत्वो का पोषण और इनका शोधन गोवंश से प्राप्त पंच गव्यों से होता है। इसीलिए गाय को पंचभूत की मां कहां गया है।

‘मातर: सर्व सुखप्रदा:। इस प्रकार वह प्रकृति की माता है। वह गोबर से धरती को उर्वरा बनाती है। जल और वायु का शोधन करती है। हमें अग्नि व ऊर्जा प्रदान करती है। आकाश को निर्मल और पर्यावरण को शुद्ध रखती है। गोबर गाय का वर है। यानि वरदान है। वह सोना रुपी खाद है। अमृत खाद है। गोबर में धन की देवी लक्ष्मी का निवास बताया गया है। ‘गोमये बसते लक्ष्मी धरती में जब हम यह अमृत खाद डालते हैं। तो धरती सोना उगलती है। हमें अमृत तुल्य पोषण तत्व प्रदान करती है। इसी प्राकृतिक देन से भारत सोने की चिड़िया बना। धन-धान्य सम्पन्न रहा। पर आज हम विपन्न क्यों बन गये। गरीबी की सीमा रेखा से नीचे कंगाली के स्तर तक क्यों पहुंच गये। हमारे गांव जो -कृषि सम्पदा, वनस्पति, गौ-सम्पदा एवम् खनिज आदि सम्पदाओं व संसाधनों के स्रोत तथा कला, कौशल का हुनर ,कारीगरी, कुटीर व ग्रामोघोगों के केन्द्र व स्वरोजगार सम्पन्न रहे है। आज क्यों उजड़ गये है। हमारे कुशल कारीगरो को गांवों से पलायन कर शहरों में सामान्य मजदूर बन कर गंदे नालों के आसपास नारकीय जीवन बसर करने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ रहा है। प्राकृतिक संतुलन और प्रदूषण क्यों बढ़ रहा है। आज प्रत्येक व्यक्ति क्यों किसी ना किसी रोग से ग्रसित है। यह यक्ष प्रश्न आज हमारे सामने मुहं बायें खड़ा है। इसका तत्काल समाधान खोजना आज विश्व की प्राथमिक आवश्यकता बनता जा रहा है। इसलिए विश्व को दिशा देने वाले भारत की प्राचीन प्रकृति मूलक गो-आधारित स्वरोजगार सम्पन्न स्वावलम्बी ग्राम की चरणबद्ध कार्य योजना पर विश्व को चलना होगा। हमारे पुराण व शास्त्रा अत्यन्त पुरातन होते हुए भी पूर्ण संतुलन के विज्ञान को दर्शाते है। 17 वीं सदी तक भारत विज्ञान में आगे था।

18 वीं सदीं में इग्लैंड के जेम्सवाट (1750) द्वारा वाष्प शक्ति की खोज ने इस समीकरण को बदलना प्रारम्भ किया। आधुनिक प्रौद्योगिकी की क्रान्ति का स्रोत कोयला था। कोयला जलने से प्राप्त ऊर्जा से यूरोप वासियों की सामाजिक शक्ति में भारी उन्नति हुई। इस उन्नति का प्रभाव आप वर्तमान में प्रकृति असंतुलन पर कोपेनहेगन में माथा पच्ची से भविष्य की चिताओं को समझ सकते है। कोयले के साथ कच्चा तेल, परमाणु ऊर्जा, प्राकृतिक गैस पन बिजली, रासायनिक खेती, जैविक खेती, खान-पान, रहन सहन, जैसे तमाम कारणों की वजह से धरती का तापमान पिछले सौ साल तापमान 0.74 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। एक अनुमान के मुताबिक 0.50 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से ही पीने योग्य पानी में 1/4 कमी आ जायेगी। 1/4 गेहू-और अन्य पफसलो का उत्पादन घट जायेगा। जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है, उसी हिसाब से मांग भी बढ़ रही है। साथ ही साथ प्राकृतिक आपदाओं और प्रदूषण से संसार विनाश की ओर बढ़ रहा है। कोपेन हेगन के वैज्ञानिको का ही निष्कर्ष है कि कृषि से 12.8 प्रतिशत ग्लोबल वार्मिग पर प्रभाव पड़ रहा है। लेकिन वे लोग भूल जाते है। कि कृषि में रासायनिक खेती को हरित क्रान्ति के नाम पर भूमि को बांझ बनाने वाले, नाइट्रस आक्साइड, मिथेन, कार्बन डाईआक्साइड हाइड्रोफ्रलुरोकार्बन, सल्पफर हैक्सा फ्रलोराइड जैसी तापमान बढ़ाने वाली गैसों की रासायनिक खेती की पैदाइस भी उन्हीं की देन है। दूसरी तरपफ यही लोग अन्तरराष्ट्रीय स्तर हल्ला मचाते है। कि भारत के पशुओं से मिथेन का उत्सर्जन ज्यादा हो रहा है। उसमें भी गौ माता को आधार बनाते है। दूसरी तरफ यही लोग अपने पशुओं को सोयाबीन, मक्का, मटर, खिलाकर मिथेन का उत्सर्जन अधिक कर मांस प्राप्त करने के लिए तापमान बढ़ा रहे है। इन मांसो को पकाने मे 18 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन हो रहा है। अमेरिका में औसतन एक व्यक्ति एक साल में 125किलो मांस खाता है। वही ब्राजील में 90 किलो, चीन में 70 किलो, बिट्रेन 110 किलो, विश्व स्तर देखा जाय तो 2009 में 42.8 करोड़ टन मांस का उत्पादन होने का अनुमान है। इसे पकाने में पृथ्वी के तापमान पर क्या असर पड़ेगा। इन लोगों को पता ही नहीं कि हमारे देश की प्राचीन पद्धति शाकाहारी, प्राकृतिक खेती, जल, जंगल, जमीन, जन जानवर के परस्पर सम्पोषण जैसे प्रकृति परख विकास की रही है।

हमारे देश की गो माता घास खाती है। जिसमें ओमेगा चर्वीदार अम्ल अधिक मात्रा में उपलब्धा होते है। जिससे मिथेन की मात्रा कम होती है। साथ ही दूध की मात्रा बढ़ जाती है। इन वैज्ञानिकों को पाराशर मुनि द्वारा दी गयी विधिा की भी जांच करनी चाहिए जिसमें उन्होंने माघ महीने में 25डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर गोबर खाद में विघटन करने वाले जीवाणु ज्यादा सक्रिय होते है। इसी समय गड्डे में गोबर का उलट पफेर ठीक होने की बात कही है। ताकि मिथेन का उत्सर्जन हो ही ना। गोमाता को स्वच्छ जल कुदरती चारा और कम से कम 6 घंटे टहलने की बात कही ताकि गाय की आत में अनुकूल प्रति जैविक निर्माण करने में लेक्टो बसीलस, बायपिफड़ो बैक्टेरियम, स्टे्रप्टोकाकस, एप्ट्रोकाकंस, ल्यूकान स्टाक, पेड़ीओकाकस, पीस्टकल्चरस अस्परजिनेस इन जीवाणुओं की भूमिका होती है जिसके कारण पर्यावरण संतुलन निर्माण होता है। इस आत में पर्यावरण के घटक होते है स्थिर जीवाणु और अस्थिर जीवाणु, लार स्वादुपिण्ड रस, लीवर और आत के अंत:स्राव, विर्सजक द्रव्य, विद्रव्य पदार्थ, संजीवक बाईलक्षार, यूरिया, संरक्षक प्रोटीन और अन्य असंख्य घटक द्रव्य होते है। ये द्रव्य पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

रूस के वैज्ञानिकों ने अनुसंधान किया कि गाय के घी से हवन करने से, धुंए के प्रभाव क्षेत्र कीटाणु और बैक्टीरिया से मुक्त हो जाता है। घी और चावल रूपी मिश्रित हवन से प्रदूषण जनित रोगों में तनावों से मुक्ती वातावरण शुद्ध िव पुष्टि देने लगता है। यज्ञ प्रभाव क्षेत्र के मनुष्य, पशु, पक्षी तथा वनस्पति की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। हवन से निकलने वाली महत्वपूर्ण गैसों में इथीलीन, आक्साईड, प्रोपलीन आक्साईड, पफार्मल्डीहाईड गैसों का निर्माण होता है। इथीलीन आक्साईड गैस जीवाणु रोधक होने पर आजकल आपरेशन थियेटर से लेकर जीवन रक्षक औषधियों के निर्माण में प्रयोग मे लायी जा रही है। वही प्रोपलीन आक्साइड गैस का प्रयोग कृत्रिम वर्षा कराने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है। केवल गो माता के गोबर को सूखाकर जलाने से मेन्थोल, पिफनोल, अमोनिया, एंव पफार्मेलिन का उत्सर्जन होता है। इन सभी रसायनों की जीवाणु क्षमता से आप चिर परिचित जरूर होगें आजकल अस्पतालों, प्रयोगशालाओं मे इन्ही का प्रयोग किया जा रहा है। इन्ही परम्पराओं में हमें ऋषि-मुनियों ने चलना सिखाया था जिससे हम प्रकृति परख सन्तुलन बनाये रखते चलते थे। तभी गाय हमारी माता है। ओजोन छेदों को भरने की क्षमता हवन में होती है।

हमारे वेदों में वर्णन किया गया है। गोमये वसते लक्ष्मी। भारतीय गाय के गोबर में अनंत कोटी कें जीवाणु होते है। गाय के गोबर में जीवाणु कहां से आते है। वे आते है गाय की आंत से। इस धरातल पर स्थित समस्त सजीव सृष्टि को जीवन देने का और जिंदा रखने का सामर्थ्य गाय के आंत और भूमाता के ऊपरी सतह के 4.5 इंच मिट्टी के स्तर में होता है। हमारे भारतीय गाय की आंत और भूमि के सतह की 4.5 इंच मिट्टी कृषि संस्कृति का मूलाधार और कल्पवृक्ष है। घर की माता को भोजन धरती माता देती है। और धरती माता को भोजन गो माता देती है। भारतीय खेती का मुख्य आधार पशुधन है। हजारों सालों से 1960 तक हमारे भारतीय खेती की उर्वरता बची रही । हरित क्रान्ति के नाम 1985 तक रासायनिक खेती से पैदावार बढ़ने की बात करने वाले लोग आज किस परिणाम पर पहुंचे है। हजारों सालों की जमा उर्वरता शक्ति का दोहन रासायनिक खेती से कराकर धरती को बांझ व पथरीली तो बनाया ही है। पर्यावरण पर बुरे प्रभाव से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी घटी है। साथ ही शरीर जघन्य बिमारियो की चपेट में आया है।

जिस खेत की बैल से 4.5 इंच जुताई के लिए अधिाकतम 5 हार्स पावर की आवश्कता की पूर्ति हो जाती है। उसी धरती की जुताई के लिए 40 से 75 हार्स पावर के ट्रैक्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है। आज देश में कुल 85 लाख टै्रक्टर हैं। हरित क्रान्ति के समय ये टै्रैक्टर 63 हजार थे, 85 लाख ट्रैक्टरो की कीमत 1445 खरब तक आकी जा रही है। साथ ही आयात, डीजल खर्च पर घ्यान दे तो इसका व्यय भी 9 खरब से उपर बताया जा रहा है। जिस ट्रैक्टर के 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की गर्मी पैदा होने से सूक्ष्म पोषण जीवाणु ट्रैक्टर से दबकर तो अधिाक गर्मी से मर जाते है। उसी को आधार पश्चिम देश मानते है।

भारत की सरकार रासायनिक खाद पर जो सब्सिडी दे रही है जो कि 1 लाख करोड़ है। रासायनिक खाद की पूरे भारत मेें खपत खरबों में है। फिर भी सरकार खाद उपलपब्धा कराने में सपफल नही हो पा रही है। क्योंकि भूमि की मांग बढ़ती जा रही है। और इसकी उपलब्धता घटता जा रही। पृथ्वी के गर्भ में कुछ भी एक सीमित मात्रा में है। प्रकृति से प्राप्त नाइट्रोजन, पफास्पफोरस, पाटैशियम जो रासायनिक खनिजों से अत्यधिाक गुणवान होते है। उस पर किसी का धयान नहीं है। हमारे देश के 40 करोड़ पशुधन से ही, 83 लाख 92 हजार 500 एकड़ भूमि को गोबर और मूत्र से उर्वरा बना सकते है। भारत मे हर दिन 92 करोड़ 59 लाख लीटर मूत्र और 185 करोड़ 18 लाख किलो गोबर के लाभ से हम वंचित हो रहे है। 60 करोड़ टन ताजा गखाद की कीमत आकेगे तो 1खरब 90 अरब करोड़ रुपए होती हैं। जिसमें 92 करोड़ 59 लाख लीटर मूत्र से प्राप्त खनिजों की तो हम बात ही नही कर रहे है। जिसमें नाइट्रोजन, पाटैशियम, अमोनिया, पफास्पफोरस, आयरन, सोडियम, सल्पफर, कापर, ताबा, कैल्शियम जैसे कुल 56 तत्व पाये जाते है।

गौ आधारित प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों के परीक्षण से पता चला कि एक भारतीय देशी गाय के गोबर और मूत्र से 30 एकड़ की जीटो बजट की खेती सपफलता पूर्वक हो रही है। और भारत में तेजी से पफैल रही है। उसकी विशेषता यह है। कि कुछ भी बाहर से नहीं खरीदना पडेग़ा तो बचत का आकलन आप स्वयम् कर लें। प्राकृतिक खेती के सपफल विभिन्न तरीको से प्रकृति को सन्तुलित रखते हुए। भूमि की उर्वरता बढ़ाने के साथ उत्पादन रासायनिक खाद से कई गुना अधिाक हो रहा है। पफसलों की सिचाई करने के लिए जिस उर्जा की आवश्यकता पड़ती है। उसकी पूर्ति बैलों के द्वारा चालित पम्पिंग सेट और जनरेटर से सपफलतापूर्वक हो रही है। जिससे रासायनिक खाद और प्रकृति को असंतुलित कर रही उर्जा से मुक्ति मिल जायेगी विश्व विख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने स्वर्गीय अमरनाथ झा के हाथों भारत के लिए संदेश भेजा था, जिसमें उन्होने कहा था कि भारत ट्रैक्टरों, उर्वरकों के कीटाणुनाशक यंत्रीकृत खेती पद्धति न अपनाए। क्योकि 400 सौ साल की खेती में अमेरिकी खेती की उर्वरता कापफी हद तक समाप्त हो चली है। जबकि भारत की भूमि का उपजाउ पन कायम है जहां 10 हजार वर्षो तक प्राकृतिक खेती होती रही है। आज के परिदृष्य को घ्यान में रखे तो घ्यान आता मंहगी खेती से देश में अब तक 2 लाख 35 हजार किसानों ने आत्म हत्या की है। ये पश्चिमी यंत्रीकृत प्रकृति विरोधी कृषि पद्धति का ही परिणाम है। देश में 11करोड़ 55 लाख 80 हजार किसानों में 7 करोड़ 11लाख 19 हजार किसान 1एकड़ के है। 2 करोड़ 16 लाख 43 हजार 5 एकड़ के है। 1 करोड़ 42 लाख 61 हजार 10 एकड़ के है। तेजी से टूटते परिवारों की वजह से आज गांव की संख्या 7 लाख के करीब पहुंच चुकी हैं। गांवो को मंहगाई से बचाने के साथ समद्धि के लिए गो आधारित प्राकृतिक खेती ही अपनाना भविष्य के लिए ठीक होगा । बाराह संहिता के हरीखाद, अग्निहोत्र, सींग की खाद, अमृतपानी खाद, खरपतवारों से खाद, पशुशव की खाद, मनुष्य मलमूत्र की खाद, एवम छाछ का छिड़काव का चलन बढ़ा है।

प्राचीन काल से ही हमारे लिए स्वच्छ उर्जा का स्रोत तो पशुधन ही रहा है। आज भी देश उर्जा की पूर्ति 66 प्रतिशत पशुधन उर्जा से ही प्राप्त हो रहा है कोयला और पैट्रोल से 14 प्रतिशत ऊर्जा, गैसों से 20 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्त हो रही है। आज बिजली बनाना ही उर्जा उत्पादन का पर्याय हो गया है। देश के समस्त विघुत उर्जा उत्पादन को धयान से देखने पर पता चलता है। कि थर्मलपावर से 64.5 प्रतिशत जलविघुत से 24.6 प्रतिशत परमाणु उर्जा से 2.9 प्रतिशत तथा पवन उर्जा से 1 प्रतिशत बिजली मिल रही है। जबकि वितरण में 23 प्रतिशत बिजली बर्बाद हो रही है। जिसकी कीमत 8000 करोड़ में है। कोयले से 27.4 प्रतिशत, कच्चे तेल से 33.5 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस से 22.8 प्रतिशत, जल विधुत से 6.3 प्रतिशत, परमाणु उर्जा से 5.9 प्रतिशत, भूगर्मीय उष्मा से 2.5 प्रतिशत, पाइपलाइन गैस आपूर्ति में 1.6 प्रतिशत, कार्बन गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। कोयला और कच्चे तेल से ही सबसे ज्यादा कार्बन गैसे निकाली जा रही है। जलविघुत परियोजनाये देश के भूकम्पीय जोन में होने के कारण कभी भी विनाशलीला मचा सकती है। इस जोने में 1911 मे 8.5 रिक्टर स्केल वाला भूकम्प आ चुका है। जबकि टिहरी जैसा बॉध 7.2 स्केल तक ही सुरक्षित है। इस बॉध के टूटने से 40 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। जबकि बड़े बांधो को अंतर राष्ट्रीय स्तर पर 15 मीटर उंचाई तक की ही अनुमति है। भोपाल गैस कांड से आप भली भांति परिचित होगें । परमाणु उर्जा की भी यही स्थिति है। विश्व के 417 रिएक्टरों से 297927 मेगावाट उत्पादन हो रहा है। जो कि पूरे विश्व में ऊर्जा का 16 प्रतिशत है। 400 करोड़ टन कार्बनडाई आक्साईड का उत्सर्जन हो रहा है। अब तक 300 भंयकर दुर्घटनाये घट चुकी जिससे 6 लाख लोगों पर रेडियोएक्टिव किरणों के प्रभाव से स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ा है। पुरी दुनिया में 124 रिएक्टर बंद कर दिये गए उसके बावजूद भारत परमाणु करार के लिए हाय तोबा मचा चुका है। बचा कुचा स्वाभिमान बेचकर अमेरिकी खेमे में दुम हिला रहा है। इसका कारण अमेरिकी 100 बिलियन डालर के रिजेक्टेड रिएक्टर के साजो सामान खपाने के लिए जी.ई. एनर्जी, थोरियम पावर, वी. एस. एक्स टेक्नोलाजी, कन्वर डायन जैसी 250 दिग्गज कम्पनियों का लक्ष्मी रूपी पफेंका चारा है। द फ्रयुचर आपफ द ट्रबल्ड वर्ल्ड के डायरेक्टर आर्म स्ट्रांग के आकंलन के अनुसार भारत को पैट्रोल 7 गुना, गैस 8 गुना कोयला 9 गुना, लोहा 75 गुना, तांबा 100 गुना, टिन 200 गुना, विघुत खर्च 1000 किलोवाट प्रति व्यक्ति होने के कगार पर प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में इतना बिजली उर्जा की आवश्यकता पड़ेगी। जबकि प्रकृति के गर्भ में द्रव्य सीमित मात्रा में होने के कारण युरेनियम 85 साल में, कोयला 70 साल, तेल 58 सालों में, गैस 52 सालों में, दो तिहाई खत्म हो जायेगें। ऊर्जा उत्पादन स्रोतों के खर्च का ब्यौरा देखने पर पता चलता है कि 1 मेगावाट विद्युत उत्पादन में कोयले से 14 करोड़, नाभिकीय से 21करोड़, कचरे से 10-11 करोड़ ;साथ ही 200 टन खाद मुफ्त में ध्द बायोमास से ढाई से 3 करोड़ ; साथ ही 20 लाख रुपये की खाद मुफ्रत मेंध्द की लागत आती है। देश कि घरेलू ईधन की आपूर्ति तो अब बायों गैस से ही सम्भव है। आईआईटी दिल्ली ने कानपुर गोशाला और जयपुर गोशाला अनुसंधान केन्द्रों के द्वारा 1 किलो सी .एन.जी. से 25 से 40 किलोमीटर एवरेज दे रही तीन गाड़ियां चलाई जा रही है। और घरेलू गैस सिलेन्डर भरना प्रारम्भ कर दिया गया है। घरेलू गैस के व्यापार पर आर्थिक नजर डाले तो लगभग 70 हजार करोड़ है। जबकि देश के 40 करोड़ वाहन मिलाकर 10 लाख टन प्रतिवर्ष कच्चा तेल खा जाते है। साथ ही 50 करोड़ टन कार्बनडाई आक्साईड उत्सर्जित करते है। मात्र 10 करोड़ टन गोबर से 8 से 10 करोड़ परिवार के ईधन की पूर्ति हो सकती है। जिस देश में 30 प्रतिशत गोबर जलाया जाता है। ब्रिटेन में प्रतिवर्ष 16 लाख टन बिजली का उत्पादन एक गोबर गैस प्लान्ट से हो रहा है। बैतूल में गोबर गैस से कम्पयूटर चलाया जा रहा है। बायोगैस से हेलीकाप्टर उड़ाने की सपफलता के करीब हम हैं। चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू गैस की आपूर्ति गोबर गैस प्लान्ट से चलाई जा रही है। गोवंश के गोबर गैस प्लान्ट से ही 6 करोड़ 80 लाख टन लकड़ी बच सकती और 3 करोड़ 40 लाख पौधो बच सकते है। जिससे 3 करोड़ 40 टन कार्बनडाई आक्साईड का खात्मा भी होता रहेगा। साथ ही 3.5 करोड़ टन कोयला की बचत होगी। जापान के वैज्ञानिको ने दो महत्वपूर्ण बैक्टीरिया की प्रजातियों का पता लगाने का दावा किया है। जो एक बायो रिएक्टर में हाइड्रोजन का निर्माण कर सकेंगे। इस खोज को गुप्त रखा गया है। हाइड्रोजन से पेट्रोल की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा ऊर्जा प्राप्त होती है। देश में बैल, ऊंट, घोड़े, भैसों की बढ़ी संख्या है। जिसमें तीन करोड़ 21लाख बैल बचे है। एक बैल के रेहट से साढ़े तीन घंटे लगातार घूमाने पर 24 बोल्ट बैटरी चार्ज हो जाती है। साथ ही जनरेटर के माघ्यम से चारा काटने वाली मशीन, पंखे, छोटी राइस मील, छोटा थ्रेशर, पम्पिंग सेट, तीन हार्स पावर की मोटर आसानी से सपफलता पूर्वक चलाई जा रही है। एक किसान परिवार की सभी विद्युत जरूरतों की पूर्ति लायक क्षमता विकसित होती जा रही है। जुताई, ढुलाई निराई, पेराई, कोटाई मे बैल की उर्जा का उपयोग तो हो ही रहा है। उर्जा मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष 60000 मेगावाट बिजली जरूरतों को घ्यान में भी रखे तो गाय से हमें 30000 मेगावाट प्रति वर्ष उर्जा प्राप्त हो सकती है वही बैलों की ऊर्जा शक्ति पर शोध् हो तो लगभग 1 लाख 50 हजार मेगावाट बिजली का प्रतिवर्ष उत्पादन किया जा सकता है। जिसमे बैलों द्वारा पवन चक्की चलाने का शोध भी शामिल है। इस प्रकिया कि खास बात यह है कि बायोगैस प्लान्ट में गोबर के उपयोग के बाद भी हमें गोबर की खाद की मात्रा अच्छी और अधिक रूप मे प्राप्त होगी। जो करोड़ो रुपए में होगी। एक गाय रात दिन में 12 सौ वाट ऊर्जा शरीर से उत्सर्जित करती है। जब की बैल आधे से तिहाई हार्स पावर अश्वशक्ति प्रदान करते है। जनसंख्या की बढ़ती मांग को धयान में रखकर हमें प्रकृति को खत्म करने वाले तरीकों को छोड़ना होगा और स्वच्छ ऊर्जा की श्रृखंला की ओर बढ़ना होगा। जिससे समृद्वि और प्रकृति पोषक ऊर्जा विकास की सुन्दर रचना हो सकें और हम विनाश से बच सके।

जितनी सब्सिडी सरकार पवन उर्जा, सौर उर्जा, जल विघुत उर्जा पर दे रही और कई गुना पैसा परमाणु उर्जा पर खर्च कर रही उसका 25 प्रतिशत पशुधन उर्जा पर लगा दे तो जल्द ही तस्वीर कुछ और ही होगी और हम स्वच्छ प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों से निरंतर ऊर्जा प्राप्त करते रहेंगे।

पूरे विश्व के 33 प्रतिशत उद्योग पर हमारा आध्पित्य था। पिछले दो सालों में यह 5 प्रतिशत रहा और आज 3.5 प्रतिशत पर हम आ गए हैं। प्राचीन स्वावलंबी भारत की कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, उर्जा, साहित्य, संगीत, अघ्यात्म, लघु उघोग, संस्कृति के उत्कृष्ठ नीति नियामक मापदंड का तो कोई जबाव नहीं था। जिसके कण-कण में प्रकृति परख विकास की ही परिकल्पना से हम उत्कृष्ट शिखर पर थे। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर धयान दें तो सेक्स उघोग पहले स्थान पर है। अफीम, चरस, हथियार उद्योग दूसरे स्थान पर, दवा उद्योग तीसरे स्थान पर है, विज्ञान प्रौद्योगिकी चौथे स्थान तथा कृषि पाचवें स्थान पर है। जबकि आज भी अगर हम स्वदेशी उद्योग पद्धति को समाहित करे तो परिणाम कापफी आश्चर्यजनक प्राप्त किये जा सकते है।

हमारे देश में पशुधन खाद्य की वस्तु ही नहीं उघोग की वस्तु पैदा करने की पफैक्ट्री बनते जा रहे है। सामाजिक परिवर्तन में लगे लोगों के द्वारा गोवंश जैविक कृषि उत्पादन, ऊर्जा पैदा करने और बचाने के उपकरण, पर्यावरण रक्षा, प्राकृतिक कृषि, सुरक्षा जैसे क्षेत्रों के विकास में अतूलनीय योगदान निभा जा रहे है। देश के नंदियों से ही 3 घंटे चक्कर काटने से 12 से 24 बोल्ट की बैटरी चार्ज होने से घरेलू उर्जा की बचत और आपूर्ति में 4 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष से अधिाक का पफायदा हो सकता है। बिजली की किल्लत से हमेशा की छुट्टी हो सकती है। नंदीचालित उपकरणों में, धानी चक्की, आटा चक्की, दुलाई ड्राली, जुताई हल, दवा छिड़काव मशीने, सिंचाई पम्ंपिग सेट के विकास से ही इसके बाजार पर कब्जा करने में ही 50000 हजार करोड़ प्रतिवर्ष लाभ हमारे देश को प्राप्त हो सकता है। जो बाहरी कम्पंनिया उठा रही है। यही नही इसके पफैलाव से अनकूट धन की वर्षा हो सकती है। अकेले कृषि ट्रैक्टरों के बाजार और कृषि तेल की खपत पर घ्यान दे तो 84 लाख ट्रैक्टरों की 1445 खरब रुपये कीमत का पफायदा साथ ही साथ प्रतिदिन लगभग 12000 हजार करोड़ के डीजल की बचत होगी। जिसके पर्यावरण असंतुलन फैलाने के योगदान का आकलन और आयात लाभ का आकंलन तो किया ही नही जा रहा है। जिसकी अपार सम्भावनायें है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बचे बारुद की रासायनिक खाद बनाकर कृषि उपज की हरित क्रान्ति के नाम जो जहर बोया गया है। उस की खपत और बाजार पर घ्यान दे तो 2007 में ही 39773.78 मिट्रिक टन कीटानाशकों का प्रयोग किया गया जिसकी कीमत भारतीय बाजार में 7 हजार करोड़ आकी गयी है। जिसमें 75 प्रतिशत विदेशी कंम्पनियो की हिस्सेदारी है। जबकि 35 हजार गाय बैलो से ही 160000 टन वर्मीकम्पोस्ट 70000 लीटर बायो पोस्टिसाइड का निर्माण किया जा सकता है यही नही देश के गाय बैलो के गोबर और मूत्र से ही विश्व के रासायनिक खाद बाजार पर और रासायनिक पेस्टिसाइड बाजार पर कब्जा कर लाखों मिलियन कमा सकते हैं। भारत सरकार रासायनिक खादों पर दे रही सब्सिडी से मुक्त हो सकती है। प्राकृतिक तरीको से की गयी खेती के उत्पाद भी खासे महंगे मूल्य पर बिकने से लाभ ज्यादा कमा सकते है।

देश के गोवंश से प्राप्त गोबर के आर्थिक लाभ की नीति बनाये तो धन लक्ष्मी की इतनी वर्षा होगी की कल्पना नही कर सकते है। 10 करोड़ टन गोबर को उद्योग दृष्टि से इस्तेमाल करे तो 8से 70 करोड़ परिवारो के घरेलू रसोई गैस की पूर्ति हो सकती है। सिपर्फ रियलांइस के इस क्षेत्र के लाभ का आर्थिक आकंलन ही कागजों पर 40 हजार करोड़ है। जबकि इससे उसको कहीं ज्यादा पफायदा प्राप्त हो रहा हैं। 10 करोड़ टन गोबर प्राकृतिक खाद बनाये तो 60 करोड़ हेक्टेयर के लिए 300 करोड़ टन खाद और 7.5 करोड़ लोगों को रोजगार राष्ट्रीय आय 45 हजार करोड़ होगी। 10 करोड़ टन गोबर अगर हम बायो सी. एन. जी. बनाने में उपयोग मे लेते है। तो पूरे विश्व में तेल की बचत के साथ-साथ प्रत्येक गाड़ी की औसत एवरेज 25 से 40 किलोमीटर 1 किलो सी.एन.जी. से हो जायेगी। वर्तमान समय मे बायोगैस से चलने वाली कारों में तेजी से विकास हुआ है। जिसका नजारा दिल्ली के कार मेले देखने को प्राप्त हुआ। हम सोचते है और विदेशी भविष्य के बाजार को धयान में रखकर उपकरण उतार देते है। अब आप जरा सोचिए कि अगर ये उपकरण हम बनाएगे तो बचत कितनी होगी। विदेशी वैज्ञानिक गोबर से पेट्रोल बनाने में तेजी से प्रयासरत हैं। गोबर गैस प्लान्ट से देश में बायो जनरेटर सपफलतापूर्वक चलाये जा रहे है। जिसका उपयोग विघुत उपकरणों को चलाने मे हो रहा है। इस विधि से लाखों मेगावाट बिजली बनायी जा सकती है। जिसका आर्थिक लाभ खरबों मे होगा। मराठा चेम्बर आफ कामर्स इण्ड्रस्टीज पुणे द्वारा )तुराज प्लास्टर सीधो-सीधो जो गर्मी ठंडी रोधक सीमेन्ट के नाम से महशूर हो चला है। इसके कई पफायदे भी है। 15 करोड़ टन गोबर से 15 करोड़ वार्षिक उत्पादन से 3 करोड़ लोगों रोजगार और राष्ट्रीय आय 90 हजार करोड़ की होगी। साथ-साथ रेडिएशन के दुष्प्रभाव गर्मी सर्दी के प्रकोप से मूक्ति भी मिल जायेगी।
आज पूरा देश बिमार है। ऐसा कोई परिवार नहीं होगा जहां एक या दो लोग बिमारी हालत में ना हो अगर कहीं नही भी है तो कब होगे भरोसा नहीं है। भोजन हवा में जहर इस कदर घुल गया है। कि आदमी का जीवित रहना अब मुश्किल है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारा प्रकृति विरोधी जीवन शैली ही है। केन्सर, ब्लडप्रेशर, अर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी संबधिात रोग होना अब आम बात हो गयी है। इनकी संख्या करोड़ो में है। डब्लू एच. ओ. के अनुसार। एक लाख 70 हजार महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था के समय आयरन की कमी से एक लाख 17 हजार बच्चों की अकाल मृत्यु कैल्सियम की कमी से हो जाती है। शरीर के आवश्यक तत्वो की कमी से मरने वालो की तादात भी कम नहीं है। मलेरिया, टी. बी., केन्सर, हैजा में दवाये अब प्रभाव शून्य हो रही है। शरीर में और ज्यादा एन्टी बायोटिक्स को बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं रही ।

विश्व व्यापार संगठन की जो ट्रेडमार्क नीति है वैसे में किसी दवा को भी नकली घोषित किया जा सकता है। जेनेरिक दवाओं को तो खत्म करने का इरादा है। एसे में सस्ती दवा का ख्वाब कैसे पूरा हो सकता है। मेडिकल जर्नल मिक्स के अनूसार भारत में लगभग 93 हजार करोड़ का कारोबार अकेले अग्रेजी दवा कम्पनियां चला रही है। एक अनुमान के अनुसार 2 लाख पच्चास हजार करोड़ का सिपर्फ अग्रेजी दवा उद्योग है। जिसमें 8 हजार करोड़ नकली दवा की खपत तो दिल्ली में और 5000 करोड़ नकली दवा की खपत राजस्थान में है। अभी 28 बढ़े राज्यों में इसकी क्या स्थिति होगी तो आपको अन्दाजा लगेगा कि लगभग एक लाख करोड़ रुपये का नकली दवाओं का उद्योग हो गया है। ऐसे में जान माल की रक्षा कैसे सम्भव है।

भारत सरकार ने अगर प्राकृतिक वैदिक वैद्य परम्परा पर शोध किया होता तो स्वस्थ भारत के साथ स्वस्थ विश्व की कल्पना कोई बड़ी बात नहीं है। और पूरे दवा उद्योग पर आपका अधिापत्य होता जो आज नहीं है। ऐसा कोई रोग नहीं जिस रोग में पंचगव्य से चिकित्सा नहीं की जा सकती और वो भी जो पदार्थ सर्वसुलभ उपस्थिति हो उसका क्यों नहीं प्रयोग हो। हालाकि पूरे देश में अब पुन: प्राकृतिक परम्परागत चिकित्सा पद्धति बढ़ रही है। यह एक सुखद संकेत है। बस आवश्यकता है देश में बड़े-बड़े शोध संस्थानों के स्थापना की। गोवंश को स्वास्थ्य पर्यावरण, उद्योग, कृषि, उर्जा इत्यादि क्षेत्रो में व्यापक उपयोग कर हम पुन: विश्व समृद्धि की सर्वोच्च शिखर पर पहुच सकते है। क्योंकि इन तरीको में अपार बचत की सम्भावनाये होती है। आज पुन: आवश्यकता है कि पथ विमुख हुए विश्व को सही राह दिखा कर हम भारत के प्राचीन प्रभुत्व को स्थापित करें। यह तभी संभव है जब हमारी सोच प्रकृति विरोध न होकर प्रकृति पोषक होगी और जल, जंगल, जमीन, जन, जानवर के प्रति हमारी श्रद्धा होगी।

Sunday, September 9, 2012


जामुन की लकड़ी का महत्त्व


अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती और पानी सड़ता नहीं | टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता |
जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय तक सड़ता नही है।जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है।नाव का निचला सतह जो हमेशा पानी में रहता है वह जामून की लकड़ी होती है।
गांव देहात में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामून की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जमोट कहते है। आजकल लोग जामुन का उपयोग घर बनाने में भी करने लगे है।
जामून के छाल का उपयोग श्वसन गलादर्द रक्तशुद्धि और अल्सर में किया जाता है।
दिल्ली के महरौली स्थित निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में जीर्णोद्धार हुआ है |700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ पानी के सोते बंद नहीं हुए हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।
इस बावड़ी में भी जामुन की लकड़ी इस्तेमाल की गई थी जो 700 साल बाद भी नहीं गली है। बावड़ी की सफाई करते समय बारीक से बारीक बातों का भी खयाल रखा गया। यहाँ तक कि सफाई के लिए पानी निकालते समय इस बात का खास खयाल रखा गया कि इसकी एक भी मछली न मरे। इस बावड़ी में 10 किलो से अधिक वजनी मछलियाँ भी मौजूद हैं।
इन सोतों का पानी अब भी काफी मीठा और शुद्ध है। इतना कि इसके संरक्षण के कार्य से जुड़े रतीश नंदा का कहना है कि इन सोतों का पानी आज भी इतना शुद्ध है कि इसे आप सीधे पी सकते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि पेट के कई रोगों में यह पानी फायदा करता है।
पर्वतीय क्षेत्र में आटा पीसने की पनचक्की का उपयोग अत्यन्त प्राचीन है। पानी से चलने के कारण इसे "घट' या "घराट' कहते हैं।घराट की गूलों से सिंचाई का कार्य भी होता है। यह एक प्रदूषण से रहित परम्परागत प्रौद्यौगिकी है। इसे जल संसाधन का एक प्राचीन एवं समुन्नत उपयोग कहा जा सकता है। आजकल बिजली या डीजल से चलने वाली चक्कियों के कारण कई घराट बंद हो गए हैं और कुछ बंद होने के कगार पर हैं।पनचक्कियाँ प्राय: हमेशा बहते रहने वाली नदियों के तट पर बनाई जाती हैं। गूल द्वारा नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है जिससे पानी में तेज प्रवाह उत्पन्न हो जाता है। इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र (फितौड़ा) रखकर उसके ऊपर चक्की के दो पाट रखे जाते हैं। निचला चक्का भारी एवं स्थिर होता है। पंखे के चक्र का बीच का ऊपर उठा नुकीला भाग (बी) ऊपरी चक्के के खांचे में निहित लोहे की खपच्ची (क्वेलार) में फँसाया जाता है। पानी के वेग से ज्यों ही पंखेदार चक्र घूमने लगता है, चक्की का ऊपरी चक्का घूमने लगता है।पनाले में प्रायः जामुन की लकड़ी का भी इस्तेमाल होता है |फितौडा भी जामुन की लकड़ी से बनाया जाता है |
जामुन की लकड़ी एक अच्छी दातुन है|
जलसुंघा ( ऐसे विशिष्ट प्रतिभा संपन्न व्यक्ति जो भूमिगत जल के स्त्रोत का पता लगाते है ) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते है
हवन में भी जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल होता है |

तुलसी एक 'दिव्य पौधा'



भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।
* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।
* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।
* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।
* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।
* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।
* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।
* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।
* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।
* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।
* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।
* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।
* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।
* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।
* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।
* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।
* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।
* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।
* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।
* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।
* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।

रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

Sunday, January 2, 2011


Cow Urine Can Cure Many Diseases






The cow is a mobile medical dispensary. It is the treasure of medicines. Cow urine therapy is capable of curing many curable and incurable diseases. The holy texts, like Atharva Veda, Charaka Samhita, Rajni Ghuntu, Vridhabhagabhatt, Amritasagar, Bhavaprakash, Sushruta Samhita, etc., contain beautiful description about the medicinal benefits of cow urine. Cow Urine Treatment and Research Center, Indore has conducted a lot of research over the past few years and reached the conclusion that it is capable of curing diabetes, blood pressure, asthma, psoriasis, eczema, heart attack, blockage in arteries, fits, cancer, AIDS, piles, prostrate, arthritis, migraine, thyroid, ulcer, acidity, constipation, gynecological problems, ear and nose problems and several other diseases.

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The analysis of cow urine has shown that it contains nitrogen, sulphur, phosphate, sodium, manganese, carbolic acid, iron, silicon, chlorine, magnesium, melci, citric, titric, succinic, calcium salts, Vitamin A, B, C, D, E, minerals, lactose, enzymes, creatinine, hormones and gold. A person falls ill when there is deficiency or excess of these substances inside the body. Cow urine contains all of these substances, which are naturally present in the human body. Therefore consumption of cow urine maintains the balance of these substances and this helps cure incurable diseases.

The Indian culture gives special place to the cow. All the 330 million gods have cow as their prime temple (all devas reside in the cow). Deva means to give, the strength to give, the ability to give more and take the minimum. This is known as Devata. The cow takes very less from us and gives us more. Therefore the Indian people have shown this with the help of strict devotion and dedication. Thus the cow has a prominent place in the Indian life and economy. Wealth, religion, enjoyment and salvation are accomplished with the service of the cow. The Indian farmer used to be known as king, or the giver of grains, due to the tradition developed in India thousands of years back. Our entire life is dependent on the cow.

The whole world takes the cow as their mother. The reason is that the birth-giving mother gives milk to its child only for one or two years, but the mother cow gives milk throughout its life, which is like nectar. A black cow is tied in the Shiva temple, and when we see the Shiva along with the black cow then we are able to overcome the malefic effects of planets in our natal horoscope. When we see the ankles of the cow we protect ourselves from sudden deaths. Circumambulating the cow is equivalent to visiting all of the holy places. As the peepal tree and tulasi plant give oxygen similarly cow is the only animal which purifies the air. If one spoon of pure ghee is poured on burning cow dung (in homa) then they can produce one-ton of pure air, therefore ghee made with cow milk is used in sacrificial fires and havans. There is no better method to remove pollution.

Cow milk, butter, ghee and buttermilk are like nectar. The cow dung is not faeces, but a purifier. It helps produce the best quality grains, fruits, and vegetables when used as manure. Cow urine is a divine medicine and is a natural pesticide for crops. Pure ghee made with cow milk poured on burning cow cakes dung, produces a smoke that subsides the effect of poisonous gas. Cow urine contains copper, which is converted into gold inside the human body. It removes all toxicity. Drinking cow milk gives strength and increases the pure qualities in the human mind.

The horns and back hump of the cow are like two powerful pyramids. We receive the strengths of the stars and sun through the medium of cow dung, milk, curd, ghee, etc. The place where the cow is tied does not produce any vastu related ill effects. If there is any malefic effect of any planet, serving the cow with chapatti and jaggery calms down the malefic effect.

The following are some of my personal experiences treating people with cow urine therapy. A person was suffering with cancer and had been told that they would not survive for long; cow therapy was done on many such cases. Out of the many patients, who were suffering with cancer for the last 4 years, many are now leading a healthy life. In the same way, a diabetes patient who was taking insulin and having a sugar level of 488 or 420 did not have the necessity to take insulin after the treatment of cow urine. In the same way AIDS, asthma, psoriasis, eczema, blood pressure, heart disease, prostrate, piles, etc., also have been cured with this treatment. Premchand Rathore was suffering from asthma and isnophilia. He had palpitations and cough along with phlegm. He is now enjoying a healthy life after taking cow urine therapy. The cough and phlegm reduced. Mrs. Sharda Jalani was having varicose veins and dysmenorrhea. She used to have swollen nerves, pain, and swelling as soon as she used to stand up and it was very painful at the time of menses. She was advised to undergo operation for both of these problems. But she went for cow urine therapy and is now healthy. Omprakash Paul suffered a heart attack. He had high levels of cholesterol and chest pain. After taking cow urine therapy he is able to walk up to four kilometers, he does not get chest pain and his cholesterol level is also normal. Chandmal Gurjar suffered with cancer of the food pipe four years back, he could not take liquids also. Now he is able to eat and drink properly, he is healthy and working in the rice fields. There are thousands of people who have recovered from serious diseases after taking this therapy.

Today many AIDS patients are taking cow urine therapy. People who were suffering with migraine and headache for the past 15 years have recovered within six months of taking this therapy. In the past few years the Cow Urine Treatment and Research Center, Indore has treated 150,000 people. Out of the total patients 85 to 90 percent were also suffering from constipation. There is an old saying that if the stomach is clean half of the diseases get cured automatically. The patients taking cow urine therapy are able to enjoying sound heath within one month of this therapy.

Sushma Khurana had a thyroid complaint. Before taking this therapy her T3 level was 4, T4 was 15, TSH was 0.2. After six months of this treatment T4 was 9.97, TSH was 1.35 and today she is free of this problem. This therapy is also beneficial in the case of eczema, ringworm, itching and other skin problems. Old eczema patients have gained a lot from this therapy. Also school and college aged children can be free from the menace of pimples and acne with this simple therapy.

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Chemical composition of distilled cow urine:

  1. Nitrogen (N2, NH2): Removes blood abnormalities and toxins, Natural stimulant of urinary track, activates kidneys and it is diuretic.
  2. Sulphur (S): Supports motion in large intestines. Cleanses blood.
  3. Ammonia (NH3): Stabilise bile, mucous and air of body. Stabilises blood formation.
  4. Copper (Cu): Controls built up of unwanted fats.
  5. Iron (Fe): Maintains balance and helps in production of red blood cells & haemoglobin. Stabilises working power.
  6. Urea CO(NH2)2: Affects urine formation and removal. Germicidal.
  7. Uric Acid (C5H4N4O3): Removes heart swelling or inflammation. It is diuretic therefore destroys toxins.
  8. Phosphate (P): Helps in removing stones from urinary track.
  9. Sodium (Na): Purifies blood. Antacid.
  10. Potassium (K): Cures hereditary rheumatism. Increases appetite. Removes muscular weakness and laziness.
  11. Manganese (Mn): Germicidal, stops growth of germs, protects against decay due to gangrene.
  12. Carbolic acid (HCOOH): Germicidal, stops growth of germs and decay due to gangrene.
  13. Calcium (Ca): Blood purifier, bone strengthener, germicidal.
  14. Salt (NaCl): Decreases acidic contents of blood, germicidal.
  15. Vitamins A, B, C, D, E: Vitamin B is active ingredient for energetic life and saves from nervousness and thirst, strengthens bones and reproductive ingredient for energetic life and saves from nervousness and thirst, strengthens bones and reproductive power.
  16. Other Minerals: Increase immunity.
  17. Lactose (C6H12O6): Gives satisfaction., strengths heart, removes thirst and nervousness.
  18. Enzymes: Make healthy digestive juices, increase immunity.
  19. Water (H2O): It is a life giver. Maintains fluidity of blood, maintains body temperature.
  20. Hipuric acid (CgNgNox): Removes toxins through urine.
  21. Creatinin (C4HgN2O2): Germicide.
  22. Aurum Hydroxide (AuOH): It is germicidal and increases immunity power. AuOH is highly antibiotic and anti-toxic.